न्यायिक निर्णयों के कारणों की जानकारी आरटीआई से बाहर: नवीन अग्रवाल

छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी ने आयोजित किया न्यायाधीशों के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम पर विशेष प्रशिक्षण

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नागपुर
न्यायिक निर्णयों के पीछे के कारणों की जानकारी सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से बाहर है। यह बात दादा रामचंद बाखरू सिंधु महाविद्यालय, नागपुर के कुलसचिव एवं आरटीआई अधिनियम के राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त प्रशिक्षक नवीन महेशकुमार अग्रवाल ने कही।
वह छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी, बिलासपुर द्वारा न्यायाधीशों के लिए आयोजित सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 पर विशेष प्रशिक्षण सत्र को बतौर संसाधन व्यक्ति संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (एसएलपी [सी] संख्या 34868/2009) का उल्लेख करते हुए बताया कि किसी न्यायिक आदेश के कारण जानने के लिए किए गए आरटीआई आवेदन को उच्च न्यायालय ने न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम, 1850 का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले का समर्थन किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदक राय, सलाह, परिपत्र, आदेश आदि की प्रतियां मांग सकता है, लेकिन न्यायिक निर्णयों के पीछे के कारणों की जानकारी नहीं मांगी जा सकती। न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीश अपने आदेशों और निर्णयों के माध्यम से बोलते हैं। यदि कोई पक्षकार किसी आदेश से असंतुष्ट है, तो उसे अपील, पुनरीक्षण या अन्य वैधानिक उपायों के माध्यम से चुनौती देनी चाहिए।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायिक अधिकारियों को आरटीआई आवेदनों का निपटारा करते समय अधिनियम के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करना चाहिए, ताकि उनके निर्णय अन्य सरकारी अधिकारियों के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकें।
इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी के निदेशक संतोष कुमार आदित्य, अतिरिक्त निदेशक नीरू सिंह, एवं आनंद प्रकाश दीक्षित विशेष रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन उपनिदेशक राहुल शर्मा ने किया।
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